Parmeshwar Kabir Saheb Prakat Diwas 2022
कबीर परमेश्वर चारों युगों में इस पृथ्वी पर सशरीर प्रकट होते हैं। अपनी जानकारी आप ही देते हैं। परमात्मा सतयुग में ‘‘सत्य सुकृत’’ नाम से, त्रेता में ‘‘मुनिन्द्र’’ नाम से तथा द्वापर में ‘‘करुणामय’’ नाम से तथा कलयुग में ‘‘कबीर’’ नाम से प्रकट होते हैं।
‘‘कबीर परमेश्वर जी का कलयुग में अवतरण’’ (Kabir Saheb Prakat Diwas 2022)
परमेश्वर कबीर जी के विषय में दन्त कथा प्रचलित है कि उनका जन्म विधवा स्त्री के गर्भ से महर्षि रामानन्द जी के आशीर्वाद से हुआ था। यह पूर्णतया निराधार है। कबीर परमेश्वर चारों युगों में सह-शरीर प्रकट होते हैं।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया। काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।Kabir Saheb Ji
कलयुग में कबीर साहेब जी के प्रकट होने का संक्षिप्त
परिचय कबीर साहेब कलयुग में सन् 1398 (विक्रमी संवत् 1455) ज्येष्ठ मास शुद्धि पूर्णमासी को ब्रह्ममूहूर्त में अपने निज धाम सत्यलोक से सशरीर आकर एक बालक रूप बनाकर लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर विराजमान हुए थे। इस ही उपलक्ष में हर साल कबीर प्रकट दिवस मनाया जाता है।
कबीर साहेब के अवतरण पर संत गरीबदास जी की वाणी है-
गरीब, सेवक हो कर उतरे, इस पृथ्वी के माहि।
जीव उधारन जगतगुरु, बार-बार बलि जांही।।
सन् 1398 में परमेश्वर कबीर जी जब सत्यलोक से नीचे शिशु रूप में अवतरित हो रहे थे, तो उनके शरीर का दिव्य प्रकाश ऋषि अष्टानन्द जी को दिखाई दिया। वे प्रतिदिन उस लहरतारा सरोवर पर स्नान-ध्यान करने जाया करते थे। अष्टानंद जी के पूछने पर स्वामी रामानंद जी ने अष्टानन्द जी से कहा, जब कोई अवतारी शक्ति पृथ्वी पर लीला करने आती है तो ऐसी घटना होती है।उस समय लहरतारा तालाब पर वहां स्नान करने आए निसंतान जुलाहा दंपति नीरू नीमा कबीर जी को अपने साथ घर ले आए थे (Kabir Saheb Prakat Diwas)। इसके बाद कबीर जी की परवरिश कुंवारी गाय के दूध द्वारा हुई थी।
शास्त्रों में प्रमाण है की कबीर परमेश्वर चारों युगों में प्रकट होते हैं वो माँ से जन्म नहीं लेते हैं। parmeshwar kabir saheb prakat diwas 2022 ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में भी यही वर्णन है कि जिस समय अमर पुरुष शिशु रूप में पृथ्वी के ऊपर प्रकट होते हैं तो उनका पोषण कंवारी गायों द्वारा होता है। कलयुग में कबीर जी 120 वर्ष तक रहें, अपनी पुण्यात्माओं को कबीर वाणी, लोकोक्ती, कविताओं द्वारा तत्वज्ञान से परिचित किया। उन्होंने गुरु का महत्व समझाने के लिए औपचारिकता रूप में 104 वर्ष के स्वामी रामानंद जी को 5 वर्ष की आयु में गुरु धारण किया था। लेकिन वास्तविकता में स्वामी रामानंद जी कबीर साहेब द्वारा बताई सतभक्ति किया करते थे। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17,18 में प्रमाण है कि कबीर साहेब (Kabir Saheb Prakat Diwas) शिशु रूप धारण करके लीला करते हुए बड़े होते हैं (Parmeshwar Kabir Saheb Prakat Diwas) तथा कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करते हैं। इससे सिद्ध है की कबीर साहेब अविनाशी प्रभु है जिनकी जन्म व् मृत्यु नहीं होती।
कबीर साहेब की वाणी है-
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।
Kabir Saheb Ji
पांच तत्व की देह न मेरी, ना कोई माता जाया।
जीव उदारन तुम को तारन, सीधा जग में आया।।
Kabir Saheb Ji
परमात्मा कबीर साहेब चारो युगों में इसही तरह लीलाम्य तरीके से प्रकट होते है।
सतयुग में सत सुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनींद्र मेरा।
द्वापर में करुणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराय।।
उनका सतयुग में सत सुकृत नाम रहता है। त्रेता में मुनीन्द्र, द्वापर में करूणामय कहलाते हैं। कलयुग में कबीर नाम धराते हैं। उनका जन्म किसी भी युग में माँ के गर्भ से नहीं होता इस लिए कबीर साहेब का प्रकाट्य दिवस मनाया जाता है, जयंती नहीं।
जयंती उनकी होती है जो जन्मते और मरते है।
कबीर साहेब जी जन्म मृत्यु से परे अविनाशी परमेश्वर है भूनलोप
हाड चाम लहू नहीं मेरे, कोई जाने सतनाम उपासी।
तारण तरण अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।
आज इस पूरी पृथ्वी पर सिर्फ संत रामपाल जी महाराज ही वह पूर्ण सतगुरु हैं जो कि कबीर परमेश्वर जी का ज्ञान जन जन तक पहुंचा रहे हैं।
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