आज गुरू पूर्णिमा है : आओ विचार करें

आज गुरू पूर्णिमा है : आओ विचार करें
आज गुरू पूर्णिमा है, सभी भाई, बहन अपने अपने गुरू जी को प्रणाम करने के लिए तैयार बेठे है ।तो आज हम इसी विषय पर थोडी चर्चा करेगें फिर गुरू को प्रणाम करेगें जी।
सबसे पहले ये जानेगें की गुरू किसे कह सकते हैं-

Supreme God


  • गु=अंधकार
  • रू= प्रकाश


अर्थात जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए। वही गुरू कहलाने योग्य हैं।

वेसे हमारे कई साथी गुरू शब्द का अर्थ एक विद्यालय में काम करने वाले सरकारी नौकर(अध्यापक) से ले लेते हैं और मेरे कई अध्यापक साथी भी अपने को गुरू कहलाने पर गुरूर महसुस करते हैं और कई धर्मगूरू बनकर बैठे हैं और दुनियाँ को गुमराह कर रहे हैं, तो में उन सभी को बताना चाहता हूँ कि कोन कोन गुरू कहलाने योग्य है कोन नहीं हैं,
सबसे पहले अंधकार किसे कहते हैं, और प्रकाश किसे कहते हैं
अंधकार मतलब बुराईयां
बुराईयाँ जैसे -
  • चोरी नहीं करना।
  • जारी नहीं करना।
  • निंदा नहीं करना।
  • जीव हत्या नहीं करना।
  • मांस नहीं खाना।
  • नशा नी करना
  • तम्बाकू का सेवन नहीं करना।
  • गुटखा नहीं खाना
  • बिडी नहीं पीना।
  • सिगरेट नहीं पीना ।
  • शराब नहीं पीना।
  • और ,
  • दहेज ना लेना ना देना।
  • आंडम्बर को दुर करना ।
  • अंधविश्वास को दूर करना ।
  • कन्या हत्या नहीं करना।
  • मृत्युभोज नहीं करना ।
  • छुआछुत नहीं करना ।
  • सभी जीवों को समान मानना।


 इनमें से कोई भी एक भी  बुराई अगर कोई अध्यापक या कोई धर्म गुरू या संत या उसका कोई भी शिष्य करता है या  यहां तक की हाथ भी लगाता है तो वो गुरू कहलाने योग्य नहीं है, वह और उसका शिष्य दोनों केवल पेसे के ठेकेदार हैं।
मुझे उस समय शर्म आती है जब में एक शिक्षक या किसी धर्म गुरू को ये सब करते देखता हूँ
तो कबीर साहेब की वो साखी याद आती है,
"झुठे गुरू के लितर(जुते) मारों"

"गुरू करों दस पांचा ,जब तक ना मिले सतगुरू सांचा"

"झुठे गुरू जग मे घणे,लंगडे लोभी लाख।
साहेब से परिचित नहीं,काव बनावे खाख।।

      जीवन में गुरू का क्या स्थान होता हैं,

कबीर साहेब कहते हैं-
"गुरू भगवान दोनों खडे,किसके लागु पांव।
बलहारी गुरूदेव की,मुझे गोविन्द दियों बताय।।

"सात द्वीप नौ खण्ड में मेरे गुरुदेव से बड़ा न कोय।
भगवान करे ना कर सके मेरे गुरुदेव करे सो होय।।"

"गुरू ही ब्रह्मा है गुरू ही विष्णु है,गुरू ही महेश्वर है उनको सब नमस्कार करों।"


"कुता हूँ गुरुदेव का मुतियाँ मेरा नाम।
गले जेबडी गुरुदेव की जित खिचों तित जाऊं।"

अत: मैं किसी की बुराई नहीं कर रहा बल्कि आपको सच्चाई से परिचित करवाने की कोशिश कर रहा हूँ।


आज तक कितने शिक्षकों ने दहेज नहीं लिया दिया,कितने जीवों को नहीं खाते ,कितने नशा नहीं करते ,कितने मृत्युभोज नी करते ,कितने सामाजिक कुरीतियो को नी बढाते और कितने धर्म गुरूओं के शिष्य नी करते ऐसा।
ये किसी से छुपा हुआ नहीं है
में सर्व बद्धिजीवी समाज से करबद्ध निवेदन करता हूँ कि आप अपने आस पास नजर घुमाये और नकली शिक्षक और धर्म गुरू को बहिष्कार करें जो "रूगु " होकर भी गुरू कहलाता है।

संवाद :- सतलोक एक्स्प्रेस न्यूज़ के संपादक Rana Ram Bhatiya Balotra

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