शिक्षक दिवस पर डाॅ ○ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को संदेश- ओम प्रकाश

नमस्कार साथियो 
यह एक कल के लिए कल्पना नही है बल्कि हकीकत है।
सभी व्यक्ति अपने शिक्षको को याद कर रहे होंगे। अपनी उपलब्धियो का श्रेय किसी न किसी रूप में अपने आदर्श शिक्षक को अर्पित कर रहें होंगे।

सारे लोग इस माहोल में होंगे और सभी अपने-अपने गुरू की महिमा मे पुल बांध रहें होंगे। हमने यह सीखा जिसमें उनकी अहम भूमिका रही। अगर वे नहीं होते तो आज मैं यंहा नही होता। उन्होंने मेरा जीवन बदल दिया। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया क्योंकि आज मैं इस मुकाम पर जो सब आप जी कारण हू।
तमाम तरह के संदेश और वाह्ट्सएप पर स्टेटस में उनके फोटो भी मिल जाऐगें।

आप जी को समझ गये होंगे कि मैं किस और संकेत कर रहा हूं।

क्योंकि मेने अक्सर देखा हैं भारत यह एक परम्परा बन चुकी है कि कोई त्योहार या उत्सव हो और किसी ने उससे संबंधित फोटो या कोई शुभकामना संदेश नही लगाया हो।
यह नामुमकिन है।
जी कल भी आपको एसा ही मंजर देखने को मिलेगा।

इस दिन यह सब आम होता है।

जी हाँ मैं बात कर रहा हूं 5 सितंबर की और इस दिन होता है शिक्षक दिवस।

इस दिन हमारे भारत देश के प्रथम उप-राष्ट्रपति एवं दूसरे राष्ट्रपति श्रीमान डाॅ○ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म हुआ था। वे एक विषय के पूर्ण ज्ञाता, दार्शनिक एवं भारतीय हिन्दू संस्कृति के महान विशेषज्ञ थे। माना जाता है कि वे एक सर्वश्रेष्ठ शिक्षक थे। और अपने अध्यापन के प्रति पूरी तरह से समर्पित थे। उन्होने क्रिश्चियन मशीनरी शिक्षण संस्थानो से अध्ययन एवं अध्यापन करवाया। तत्कालीन माहोल के अनुसार इसाई लोग भारत की संस्कृति एवं हिन्दू दर्शन को एक निम्न स्तर का मानते थे। हर कोई अंग्रेज भारत की हिन्दू संस्कृति का आलोचक था। उस दौर में उन्होंने हिन्दू दर्शन को समझने के लिए विभिन्न हिन्दू ग्रंथों का अध्ययन किया। और यह शाबित करना भी चाहा कि हिन्दू संस्कृति सर्वश्रेष्ठ है और यह शान्ति से रहना सिखाती है। उन्होंने विभिन्न धार्मिक पुस्तकें एवं दार्शनिक पुस्तकें लिखी और प्रकाशित करवाई। उन्होने सहायक प्राध्यापक एवं बाद में प्राध्यापक के रूप में दर्शनशास्त्र का अध्यापन करवाया। सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथों से उन्होने परम सत्य खोजने का प्रयास किया। और जितना अपनी बुद्धि से जाना समझा उसे जनता के सामने रख दिया।
इसलिए हम सभी उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाते है।

भारतीय संस्कृति गुरु-शिष्य परम्परा पर आधारित रही है। जंहा पर गुरु को श्रेष्ठ माना जाता है। जो बालक के भविष्य का निर्माता होता है।

इस दिन शैक्षणिक संस्थाओ में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन अपने शिक्षको के सम्मान में किये जाते है। इस दिन विद्यार्थी शिक्षक बनते है अपने आदर्श शिक्षक की तरह पढाने की कोशिश करते है। इस तरह मौके मेने कभी नही खोये।

अब मैं एक शिक्षक का किरदार अदा कर रहा हूं। मुझे वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में काफी कमी महसूस होती है। जिसकी पूर्ती किए बिना हम अच्छा शिक्षक दिवस नही मना सकते है।

वर्तमान में शिक्षा एक व्यवसाय बन चुका है और धन के बदले मिल रहा है। बहुत कम शिक्षण संस्थान है जो अपने उद्देश्यों को पूरा कर रहे है। अगर कोई शिक्षण संस्थान यह दावा करता हो कि हम पूरी तरह से शिक्षा को समर्पित है और विद्यार्थियो को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान करते है। ऐसा एक भी संस्थान नही है स्वतंत्र भारत में गुलाम नागरिक पैदा किये जा रहे है। जो किया लोकतंत्र के लिए सबसे बङा खतरा है। कोई अपनी आवाज को उठाना चाहता है उनको अनुशासन का डर दिखा कर उसकी आवाज को दबा दिया जाता है। इस पूंजीवादी व्यवस्था को बढावा देने में विद्यार्थियो की भूमिका अहम है। तो वर्तमान दौर में इस पूंजीवादी मानसिकता से अछूते नही है। चाहे विद्यार्थी हो, चाहे शिक्षक हो और प्राचार्य हो।

शिक्षा प्राप्ति में अनुशासन सहायक भी है और कभी-कभी यह हथियार का काम भी करता है। जिससे बालक खुलकर अपना विरोध प्रकट नही कर पाते।

मैं आज शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षको को शिक्षा के मूल उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहने की अमूल्य भेंट देना चाहता हूं।

विद्यार्थियो को खुला मंच उपलब्ध करवाये ताकि वे अपने अमूल्य विचार प्रकरण से संबंधित अपनी सहमति और असहमति प्रकट कर सके। और शिक्षक इस असहमति से उसके प्रति गलत भाव नहीं रखें। अगर ऐसा होता है तो विद्यार्थी भविष्य अपनी राय प्रकट नहीं करेगा।


मैं डाॅ○ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के द्वारा किया गया धार्मिक अध्ययन की कुछ झलक रखता हूं जिससे शाबित होता है उन्होंने भले ही हिन्दू धर्म के धर्मग्रंथों को पढकर उनका सत्य खोजने का प्रयास किया हो लेकिन वे सत्य को खोज नही पाये।
इसका उदाहरण है उनके द्वारा श्रीमद्भागवत गीता का अनुवाद।
इसमें उन्होंने गीता अध्याय 18 के मंत्र 66 का अनुवाद पूरी तरह से गलत किया है। जिसमें वे व्रज का अर्थ आना कर रहे जबकि व्रज का आना नही होता, जाना होता है। इससे पता चलता है डाॅ○ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को धार्मिकता पर इतनी लिखने के बावजूद उन्हें कोई सत्य की प्राप्ति नही हुई।

लेखक - ओम प्रकाश


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