"आओ सुनो एक कहानी, अभी बनी है, नहीं पुरानी, हम पर बीती, हमने जानी"

सच्चा सतगुरू आया सचखण्ड से सच्चा ज्ञान बताने..,
    सत भगती देकर के हमको, सचखंड ले जाने
       जब खुला पिटारा सत ज्ञान का, लोग लगे दांतो तले ऊँगली दबाने,
        ऐसा ज्ञान कभी नहीं जाना, सबको लगे बताने.
          तीनो देव की होवे मृत्यु, शास्त्रों से लगे दिखाने..,
            परमात्मा साकार है, कबीर नाम है, सबको लगे समझाने
              सत ज्ञान समझ, जुड़ने लगे भगत, आ गए कबीर घराने..,

                अब ढोंगी डूबत देख अपनी नैया,लगे हाथ पावन चलाने
                  कह सतगुरु को झूठा झूठा, खुद झूठ बोले सीना ताने..,
                    उनमे से है नकली आर्य समाजी, जो न भेद गुरु का जाने
                      अब्डम सब्डम ज्ञान दयानन्द का उसको लगे सर पे बिठाने..,
                        जब  खोली पोल नकलियों की तो लगे बोखलाने
                          करौंथा कांड करके माने, नशेड़ी दयानन्द के दीवाने..,
                            सतगुरु को जेल डाल कर, लगे उदमस्ताने
                              सोचा खेल हो गया ख़तम, लगे फिर से अपनी दूकान चलाने..,
                                 सतगुरु नहीं वो खुद भगवन आये हैं इन्हें भूल पड़ी अनजाने
                                  रुक कर सत्य फिर हुआ उजागर, लगा सूर्य की तरह किरणे फैलाने..,
                                    धीरे धीरे बढ़ती संगत, सतगुरु चरन चित लगाने
                                      सच्चे  सतगुरु की बलि जाऊँ, लगी असली राम गुण गाने..,
                                        नकलियों में हुई आहट, वो लगे फिर बड बुड़ाने,
                                          दाल गलती न देख जब अपनी, लगे आरोप लगाने..,
                                            ये नकली है, ये झूठा है लगे जोर जोर चिलाने
                                              शास्त्रों का ये परमान न माने, लगे अपनी बात बखाने..,
                                                फिर से सतगुरु के खिलाफ साजिश का एक और पुलिन्दा बनाने
                                                  भ्रष्ट सरकार मिली, मीडिया मिली, मिली प्रशासन के सियाने..,
                                                    सब मिल कर चल पड़े, एक नया अधियाऐ बनाने, जी, बरवाला कांड कराने
                                                       चालीस हजार बुला पुलिस फोर्स, लगे भगतों को डराने..,
                                                        हर कोशिश में लगे रहे, भगतों को वहां से भगाने
                                                           जब देख दृढ़ता भगतों की, वो फिर लगे जेहरीले आंसु गैस चलने..,
                                                            पानी की बौछारों से लाठी की मारो से, लगे नए नए ज़ख़्म बनाने
                                                               बरवाला में आज हाहाकार मची थी, फिर भी जय जय कार लगी थी..,
                                                                मीडिया दूर दूर खड़ी थी, आज बरवाला इतिहास रचान लगी थी
                                                                  जुल्मो सितम के बीच में, चले सतगुरु के गीत..,
                                                                    सतगुरु आये दया करी, न मच सकी रुधिर की कीच
                                                                      चले सतगुरु अपनी लीला करने,पापियों के बीच..,
                                                                        चली वहां जब ज्ञान की आंधी, ले आई खु से खींच
                                                                          ज्ञान, ध्यान, नाम सुमिरन जब हुआ लगन फिर जेल में..,
                                                                            पापी पाप छोड़ छाड़ कर,अब तरसे सतगुरु मेल ने
                                                                              दीदार, दर्श को तरस रहे हम, ले जाओ सतगुरु जेल में..,
                                                                                हम को वो जेल ही प्यारी, जो होवे दर्शन नैनं ने
                                                                                  बहुत समा बीत गया भगवन, आओ दर्श दियो जी..,
                                                                                    दर्श बिना अधुरा जीवन, अब तो आन मिलो जी
                                                                                      तुम बिन हमको कोई न भावे, सुना यह संसारा..,
                                                                                        लीला तेरी अपरम्पारा, में न जानी काल की मारा
                                                                                          आओ सतगुरु बरवाला धाम में, जहाँ बुलायो आप सत्संग में..,
                                                                                            जहाँ निहारत थी सतगुरु,खड़ी लगी दश॔न में
                                                                                               जब हाथ धर्यो था सर पे मोरे, नैन दियो थे रोये..,
                                                                                                प्रेम की प्यासी युग युग भटकि, वह प्रेम मिलियो मोहे
                                                                                                   आओ भगवन, दर्श दियो जी, माफ़ करयोजी अपराध हमारे..,
                                                                                                    हम बालक तुम साईं सबके, तुम सबके सिरजन हारे
                                                                                                       दया के सागर दया करो जी हम हैं जीव तुम्हरे..,
                                                                                                        तुम बिन हमरो कोई नहीं है, तुम हो प्राण अधारे
                                                                                                          एक दिन होगा सत्य उजागर, ये होगा सतगुरु के खेल में..,
                                                                                                            मिटा अँधेरा, ज्ञान के दीपक, फिर भागे नकली रेल में

                                                                                                                जय हो...MERE MALIK..

                                                                                                                                                      सत साहिब जी                                         

                                                                                                                  Post a Comment

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