महज सोलह मिनट में हुई शादी, एक अनोखी मिशाल

न दहेज, न बैंडबाजा और न बजी शहनाई। दूल्हा आया,  और मिनटों में दुल्हन ले गया
 नवलगढ़। महज 16 मिनट में हुई बेहद अनोखी शादी। न दहेज, न बैंडबाजा और न बजी शहनाई। दूल्हा आया, और मिनटों में दुल्हन ले गया  ये अनोखी शादी हुई थी राजस्थान के  झुन्झुनू जिले की नवलगढ़ तहसील में। शादियों में जहां धूम धड़ाका और चमक-धमक कर लाखों खर्च करते हैं, वहीं राजस्थान के झुन्झुनू जिले की नवलगढ़ तहसील में महज 15 मिनट में आदर्श विवाह हुआ।
इस विवाह में ना बैंडबाजा, ना घोड़ी, ना ही दूल्हा-दुल्हन के सिर पर कोई सेहरा था और ना ही कोई नाच-गाना हुआ। यह आदर्श विवाह राजस्थान के  झुन्झुनू जिले की नवलगढ़ तहसील में शुक्रवार को कबीर पंथी से संपन्न कराया गया था। दुनिया में तमाम बुराइयों के बावजूद समाज में कभी—कभी कुछ ऐसा हो ही जाता है जो दूसरों के लिए मिसाल बनकर सामने आता है। ऐसी ही एक मिसाल शुक्रवार को राजस्थान के  झुन्झुनू जिले की नवलगढ़ तहसील में सामने आई। 

   जब दो परिवारों ने बिना किसी ताम—झाम के अपने बच्चों की शादी सम्पन्न करवा दी।मजेदार बात ये रही कि इस शादी के गवाह गांव के सरपंच पति—पत्नी भी बने। दोनों ने वर—वधु को अपना पूरा सहयोग दिया और इस अनौखे विवाह की खूबियों को समाज के अन्य लोगों से अपनाने की अपील भी की।सामाजिक रीति-रिवाज से परे दहेज रहित इस अनोखी शादी में दुल्हन साधारण कपड़ों में ही ससुराल के लिए विदा हुई।दहेज के लोभियों को ठेंगा दिखाती इस शादी में बारात के रूप में दूल्हे के 5-6 परिजन ही शरीक हुए और मात्र 15 मिनट में विवाह संपन्न हुआ था। नवदंपति ने संत कबीर के चित्र के सामने एक-दूसरे के साथ जीवन बिताने का संकल्प लिया।



इस अनोखी आदर्श शादी में रस्में भी परमात्मा की प्रार्थना कर और दूल्हा-दुल्हन को रक्षासूत्र बांधकर पूरी की गई। इसके बाद दूल्हा-दुल्हन के साथ मौजूद सभी लोग हाथ जोड़कर एक सुर में रमेणी (गुरुवाणी) के दौरान चौपाइयां दोहराते नजर आए। रमेणी के साथ ही यह विवाह संपन्न हो गया था। शादी में दोनों पक्षों के तमाम रिश्तेदार तो शामिल हुए ही, वहीं कबीर पंथ को मानने वाले कई भक्त दूर-दूर से आए हुए थे।

      शादी में दहेज, बहु को दहेज के लाचल में मारने, दुल्हे द्वारा दहेज नहीं मिलने पर शादी से मना कर देने और नशे में धुत्त होकर बारातियोें द्वारा हुडदंग मचाने की घटनाओं के बीच यह शादी सभ्य समाज के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण बनी गई।मामला पुरोहित की ढ़ाणी, नवलगढ़ तहसील का है। यहां पर दुर्गेश दास ने अपने गुरु को साक्षी मानकर कोमल के संग जीवनभर एक—दूसरे का साथ निभाने के बंधन में बंध गए। 
दुर्गेश के पिता रतनलाल जाखड़ ने बताया कि उनके बेटे का विवाह परमेश्वर कबीर साहेब  की अनुकंपा से सम्पन्न हुआ है। जिसमें उनके बेटे की शादी रामकिशन कुल्हरी की बेटी से शादी हुई है।इस अनूठी शादी के गवाह बने हैं गांव के ही सरंपच तारादेवी व उनके पति। दोनों ने शादी में पहुंचकर वर—वधु का मनोबल बढ़ाया। शादी में महज टेंट लगाकर बिना किसी ढोल—नगाड़े के दिन की दोहपर में सारा आयोजन सम्पन्न हो गया।जिसमें न बारात आई और न ही डीजे बजा ।
 इस विवाह में शामिल होने के लिए आमंत्रण कार्ड में छपवा दिया गया था कि समारोह प्रचलित सामाजिक रीति—रिवाजों से परे करीब पंथ एवं शास्त्रानुसार होगा।शादी में आने वाले मेहमान धुम्रपान, जैसे बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा, खैनी व जर्दा से दूर रहेंगे तो ही शामिल हो पाएंगे।
 साथ ही शराब पीने वालों और किसी भी तरह का नशा करने वालों को इस शादी में शामिल नहीं किया गया।शादी के गवाह बने वर—वधु पक्ष के अलावा विनोद दास गुढ़ा, जितेंद्र दास किरोड़, बंशीदास कैरू, सुभाष दास माखर की ढाणी, कजोड़दास नवलड़ी, कमलदास कोलसिया, राजेंद्र दास समसपुर, राजपाल दास बड़वासी और इसके साथ ही कई अन्य लोगों ने भी शादी में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।

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